दिल्ली के द्वारका उप-शहर मे बसे प्राचीन बारह गाँवों श्री दादा देव जी महाराज को अपने ग्राम देवता के रूप में पूजा करते हैं, अतः इन 12 गाँवों के भक्तों ने सम्लित होकर श्री दादा देव मंदिर का निर्माण किया। इन बारह गाँवों के नाम क्रमशः पालम, शाहबाद, बागडोला, नासिरपुर, बिंदापुर, डाबड़ी, असालतपुर, उंटाला, मटियाला, बापरोला, पूठकला और नांगलराई।
मंदिर की प्रबंधन समिति द्वारा एक चिकित्सा औषधालय, दिव्यंग बच्चों के लिए एक स्कूल, धर्मशाला एवं चार बड़े सत्संग हॉल का संचालन किया जाता है।
श्री दादा देव मंदिर में पूजा-अर्चना करने के लिए रविवार, मासिक पूर्णिमा एवं अमावस्या अत्यधिक महत्वपूर्ण दिन हैं। मंदिर का पूरा परिसर आठ एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसके अंतर्गत मंदिर परिसर, तालाब एवं मेला क्षेत्र सम्लित है. स्थानीय समुदाय के अनुसार मंदिर के तालाब की मिट्टी त्वचा रोगों को ठीक करने मे सहायक है। शादी के बाद नव विवाहित जोड़ा दादा देव महाराज का आशीर्वाद लेने आता हैं, एवं अपने मंगल जीवन की कामना करते है।
दोहा ध्यान लगाकर हृदय से,
सुमिर श्री दादा देव महाराज ।
मन वांच्छित फल देवन हारे,
सँवारे बिगड़े काज ।
जय-जय दादा देव विधाता,
दीनन के तुम हो सुखदाता ।
टाँक-टोडा से हुआ निकासा,
पालम गाँव में किया निवासा ।
राजस्थान में रामदेव कहे,
पालम में दादा देव काहाए ।
श्वेत अश्व की करे सवारी,
महिमा बहुत अपार तुम्हारी ।
श्री दादा देव महाराज जी एवं पालम की स्थापना का इतिहास:
राजस्थान के टोंक जिले की टोड़ा नामक रियासत के शाही खानदान में राव राजा राय सिंह सोलंकी अपनी पत्नी रानी फूलवती के साथ राज करते थे (विo सo 654 यानी 597 ईo) में विजय दशमी / दशहरे के दिन उनके घर में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम जयदेव रखा गया। ज्योतिषियों के अनुसार बच्चा धार्मिक प्रवरती का होगा उनका ध्यान राजपाट में नहीं लगेगा।
कुछ समय बाद राजा राय सिंह के घर एक और पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम धर्मदेव रखा गया। धर्मदेव राज काज में भाग लेते और जयदेव जी दूर जंगल में एक शिला पे बैठ कर ईश्वर का ध्यान व उपासना करते व ब्रह्मचारी का जीवन व्यतीत करते। समय बीता छोटे भाई की शादी हुई व एक पुत्र हुआ जिसका नाम कर्मचंद हुआ। जयदेव जी अपने घोड़े पर बैठकर जंगल में जाते और शिला पर बैठकर घंटो तपस्या मे लिन रहते। तब लोग उन्हें दादा देव महाराज पुकारने लगे, कहते हैं दादा देव महाराज 120 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हो गए। समय बदला राजा कर्मचंद पर दूसरे राजाओं ने हमला किया और हार के बाद उन्हें समाज के साथ पलायन करना प़डा।
लेकिन चलने से पहले उन्होंने अपने पूर्वज दादा देव महाराज जिस शिला पर बैठकर ध्यान लगाते थे उस सिला को गाड़ी में साथ रख लिया और 36 बिरादरी के लोगों के साथ वहां से चल पड़े। काफी दिनों के चलने के बाद एक दिन राजा कर्मचंद सो रहे थे कि उन्हें स्वप्न आया और जय दादा देव जी ने उन्हें बताया की मंजिल आने वाली है। जहां पर भी मेरी शिला गाड़ी से अपने आप नीचे आ जाएगी वहीं पर आप लोग बसेरा करेंगे और वह स्थान 5 जून 781 ईo जेष्ठ मास की (शुक्ल पक्ष में) दसवीं विo संवत 838 था। शिला नीचे आई और पालम गांव की स्थापना के साथ-साथ श्री दादा देव मंदिर की स्थापना हुई। तब से आसपास के 12 गांव के लोगों की कमेटी इस मंदिर का संचालन करती है और सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Devotees offer gud ki bheli(गुड़ की भेली) and chaddar as manokamana poorn prashad, around 1500 to 2000 bheli offerd daily in this temple.
All gud(गुड़) are donated to Gaushala from Najafgarh, Bawana or Narela. Mustered oil offered to Shri Shani Dev Ji also donated to Gaushala.
Shiv Mandir decorated with His closest Gan, Naags. Whenever you think about Lord Shiv Naag will be there, therefore with this concept temple`s viman is decorates.
Pratham Shri Ganesha is established at the very first main entry of the temple. HE is the lord of shubh and happiness.
In the vicinity there is a beautiful pond and well maintained garden and a mela ground.
A big main queue hall after inner main gate. This hall direct attached with main prayer hall of Dada Dev Pratima, and beautify with two white elephant.
The series of four consecutive white colored temples with beautiful side view from main prayer hall side.
A four sided open well maintain Yagya Shala with red colored wall. All rituals related to Agni are initiated from this place.
Temple Prabandhak Sabha preserved a Holy Rama Setu(राम सेतु) stone from Rameswaram island to public darshan and devotees pray this stone.
Shikhar of main prayer hall, where Dada Dev is present on Dada Dev shila. This Shikhar is highest one in all supporting temples in premises.
Main entry point of temple via shoe store. Parking, bhandara hall, washrooms Dispensary and Childrens park was visited before entry this gate. Lord Shri Krishna with His cow are present at the top of this gate.
Outer main entry gate of entire temple campus, all prasad and pooja samagri related shop are aligned with this gate. Also well connected with busy market side road.
Angoor Dane(अंगूर दाने) or Badi Bundi(बड़ी बूंदी) prasad mainly offered to Lord Hanuman ji, Bundi Recipe is gram flour deep fried in desi ghee and dipped in mithi chasni.
Motichoor Ladoo (मोतीचूर के लड्डू) are similar varient of bundi and loved by Lord Ganesh.
Besan ke laddu - बेसन के लड्डू made by using gram powder, sugar and bake in Desi ghee. Offered by bhakt to their isht-dev(ईष्ट देव)
** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें।