Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel
Hanuman Chalisa - Hanuman ChalisaDownload APP Now - Download APP NowAditya Hridaya Stotra - Aditya Hridaya StotraFollow Bhakti Bharat WhatsApp Channel - Follow Bhakti Bharat WhatsApp Channel

कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha)


कामदा एकादशी व्रत कथा
Add To Favorites Change Font Size
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे: हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूँ। आपने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात पापमोचनी एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे धर्मराज! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। एक समय की बात है, यही प्रश्न राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने बतलाया, वही मैं तुमसे कह रहा हूँ।

कामदा एकादशी व्रत कथा!
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।

एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया। तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग।

पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएँ अत्यंत लंबी हो गईं। कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा।

जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती।

एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गई, जहाँ पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहाँ जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी।

उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले: हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ‍

ललिता बोली: हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए।

श्रृंगी ऋषि बोले: हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।

मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी: हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए।

एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा। उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए।

वशिष्ठ मुनि कहने लगे: हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
यह भी जानें

Katha Ekadashi Vrat KathaVrat KathaVishnu Bhagwan KathaKamada Ekadashi KathaVaishnav KathaIskcon KathaChaitra Shukla Ekadashi KathaChaitra Ekadashi Katha

अगर आपको यह कथाएँ पसंद है, तो कृपया शेयर, लाइक या कॉमेंट जरूर करें!

Whatsapp Channelभक्ति-भारत वॉट्स्ऐप चैनल फॉलो करें »
इस कथाएँ को भविष्य के लिए सुरक्षित / बुकमार्क करें Add To Favorites
* कृपया अपने किसी भी तरह के सुझावों अथवा विचारों को हमारे साथ अवश्य शेयर करें।

** आप अपना हर तरह का फीडबैक हमें जरूर साझा करें, तब चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक: यहाँ साझा करें

कालयवन वध कथा

यह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था और अरब के पास यवन देश में रहता था। पुराणों में इसे म्लेच्छों का प्रमुख कहा गया है।

रोहिणी शकट भेदन, दशरथ रचित शनि स्तोत्र कथा

प्राचीन काल में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए थे। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी...

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा

संतोषी माता व्रत कथा | सातवें बेटे का परदेश जाना | परदेश मे नौकरी | पति की अनुपस्थिति में अत्याचार | संतोषी माता का व्रत | संतोषी माता व्रत विधि | माँ संतोषी का दर्शन | शुक्रवार व्रत में भूल | माँ संतोषी से माँगी माफी | शुक्रवार व्रत का उद्यापन

अथ श्री बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा

भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्‌मणों...

श्री रुक्मणी मंदिर प्रादुर्भाव पौराणिक कथा

निर्जला एकादशी व्रत का पौराणिक महत्त्व और आख्यान भी कम रोचक नहीं है। जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ संकल्प कराया था...

पौष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा

पौष मास में चतुर्थी का व्रत कर रहे व्रतधारियों को दोनों हाथों में पुष्प लेकर श्री गणेश जी का ध्यान तथा पूजन करने के पश्चात पौष गणेश चतुर्थी की यह कथा अवश्य ही पढ़ना अथवा सुनना चाहिए।

मंगलवार व्रत कथा

सर्वसुख, राजसम्मान तथा पुत्र-प्राप्ति के लिए मंगलवार व्रत रखना शुभ माना जाता है। पढ़े हनुमान जी से जुड़ी मंगलवार व्रत कथा...

Hanuman Chalisa - Hanuman Chalisa
Ram Bhajan - Ram Bhajan
×
Bhakti Bharat APP