जिनके वियोग में पशु इस प्रकार व्याकुल हैं, उनके वियोग में प्रजा, माता और पिता कैसे जीते रहेंगे? श्री रामचन्द्रजी ने जबर्दस्ती सुमंत्र को लौटाया। तब आप गंगाजी के तीर पर आए॥1॥
श्री राम ने केवट से नाव माँगी, पर वह लाता नहीं। वह कहने लगा- मैंने तुम्हारा मर्म (भेद) जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है,॥2॥
जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदरी स्त्री हो गई (मेरी नाव तो काठ की है)। काठ पत्थर से कठोर तो होता नहीं। मेरी नाव भी मुनि की स्त्री हो जाएगी और इस प्रकार मेरी नाव उड़ जाएगी, मैं लुट जाऊँगा (अथवा रास्ता रुक जाएगा, जिससे आप पार न हो सकेंगे और मेरी रोजी मारी जाएगी) (मेरी कमाने-खाने की राह ही मारी जाएगी)॥3॥
मैं तो इसी नाव से सारे परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। दूसरा कोई धंधा नहीं जानता। हे प्रभु! यदि तुम अवश्य ही पार जाना चाहते हो तो मुझे पहले अपने चरणकमल पखारने (धो लेने) के लिए कह दो॥4॥
हे नाथ! मैं चरण कमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा, मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता। हे राम! मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं सब सच-सच कहता हूँ। लक्ष्मण भले ही मुझे तीर मारें, पर जब तक मैं पैरों को पखार न लूँगा, तब तक हे तुलसीदास के नाथ! हे कृपालु! मैं पार नहीं उतारूँगा।
केवट के प्रेम में लपेटे हुए अटपटे वचन सुनकर करुणाधाम श्री रामचन्द्रजी जानकीजी और लक्ष्मणजी की ओर देखकर हँसे॥100॥
Granth Ramcharitmanas GranthAyodhya Kand GranthTulsidas Ji Rachit Granth
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