विक्रम संवत 1562 में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्वामी हरिदास की सघन-उपासना के फलस्वरूप वृंदावन के निधिवन में श्री बांके बिहारी जी महाराज का प्राकट्य हुआ। बिहारी जी के इस प्राकट्य उत्सव को बिहार पंचमी के नाम से जाना जाने लगा।
बिहार पंचमी के दिन ठाकुर जी के बाल रूप को पीत वस्त्र, श्रृंगार हेतु स्वर्ण आभूषण, विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्प, मेवा-युक्त हलवा-खीर एवं 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। बिहार पंचमी के दिन श्री बांके बिहारी जी के प्राकट्य के साथ-साथ ही स्वामी हरिदास जी महाराज की बिहारीजी के प्रति अनन्य भक्ति को भी याद करने का दिन है।
स्वामी हरिदास जी का संक्षिप्त परिचय - विक्रम संवत 1560 में स्वामी हरिदास अपने पिता श्री आशुघीर जी से युगल-मंत्र की दीक्षा लेकर विरक्त होकर वृंदावन चले आए और यमुना-तट के सधन वन-प्रान्तर में जिस स्थान को अपनी साधना का केंद्र बनाया, आज यह स्थान निधिवन के नाम से विख्यात है। निधिवन की सघन कुंजें स्वामी हरिदास जी महाराज के मधुर गायन से गूँज उठीं।
संबंधित अन्य नाम | श्री बिहार पंचमी, बिहारी पंचमी |
शुरुआत तिथि | मार्गशीर्ष शुक्ला पञ्चमी |
कारण | श्री बांके बिहारी जी महाराज का प्राकट्य दिवस। |
उत्सव विधि | पूजा, भजन-कीर्तन, भोग, प्रसाद। |
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